आओ ना समझौता कर ले, अपने हक़ की बात से
कुछ भी तो नही होने वाला, गूंगी बहरी सरकार से।
आओ ना समझौता कर ले, अपने स्वाभिमान से
इससे होने से कितनी ही, जाने जाती तलवार से।
आकर अब समझौता कर, अबला अपने सम्मान से
तन ढक कर तो भूखी मरेगी, नंगी हो जा बाजार में।
आकर अब समझौता कर, वंचित सपनो की उड़ान से
बिन संचित धन के अटकेगा, तू बीच आसमान में।
आकर अब समझौता कर, बेटी अपने अरमान से
पढ़ लिख कर क्या करना, जब जनना बस संतान है।
आओ अब समझौता कर ले, देश, समाज, संसार से
जैसा है वैसा ही चलेगा, क्यों छेड़े बेकार में।
आओ अब समझौता कर ले, अपनी देह और प्राण से।
इस जीवन में क्या रखा, अब चल दो इस संसार से।
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© Arvind Maurya
कड़वी सत्य को दर्शाती आपकी कविता साथ ही जबरदस्त कटाक्ष।👌👌
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